रामायण किसने लिखा? (Who wrote the Ramayan?)

रामायण (अंग्रेज़ी: Ramayana) भारतीय साहित्य और संस्कृति का एक अत्यंत प्रतिष्ठित महाकाव्य है, जिसे महान संस्कृत कवि वाल्मीकि ने लिखा। वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य के पहले कवि (आदि कवि) के रूप में सम्मानित किया जाता है। इसे ‘वाल्मीकि रामायण’ या ‘बाल्मीकि रामायण’ भी कहा जाता है। यह महाकाव्य श्रीराम और सीता के जीवन, उनके संघर्ष और धर्म की अवतार कथा के रूप में प्रस्तुत होता है।

रामायण एक महाकाव्य है, जिसमें 7 काण्ड, 500 छंद, और लगभग 24,000 श्लोक होते हैं। इस कारण इसे “चतुर्वेदीसारसारसंपन्नं संस्कृत काव्य” भी कहा जाता है।

वाल्मीकी रामायण सात काण्डों में विभक्त है, जो इस प्रकार हैं:

  1. बालकाण्ड
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुंदरकाण्ड
  6. युद्धकाण्ड
  7. उत्तरकाण्ड
  • बालकाण्ड में श्रीराम के जन्म से लेकर उनकी शिक्षा, विवाह और वनगमन तक की कथा का वर्णन है।
  • अयोध्याकाण्ड में राम के राज्याभिषेक की तैयारी से लेकर उनके वनवास जाने तक की घटना का विवरण है।
  • अरण्यकाण्ड में राम का दण्डकारण्य में निवास, उनकी साधना, और रावण द्वारा सीता का हरण करने की कथा का उल्लेख है।
  • किष्किन्धाकाण्ड में राम और लक्ष्मण की सुग्रीव से मित्रता और सीता की खोज के प्रयासों की कथा दी गई है।
  • सुंदरकाण्ड में हनुमान द्वारा सीता का संदेश लेकर राम तक पहुँचने और रावण से युद्ध के लिए तैयारी करने का विवरण है।
  • युद्धकाण्ड में राम और रावण के बीच हुआ महायुद्ध और रावण की पराजय के बाद राम के राज्याभिषेक का वर्णन है।
  • उत्तरकाण्ड में लव और कुश के जन्म, राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन, और अंत में राम के पृथ्वी पर प्रस्थान की कथा दी गई है।

रामायण का रचनाकाल (The Composition Period of the Ramayana)

रामायण के रचनाकाल को लेकर अनेक समस्याएँ हैं। इसका कारण यह है कि आज तक यह प्रमाणिक रूप से निश्चित नहीं किया जा सका है कि रामायण की रचना कब हुई थी। भारतीय साहित्यिक परंपरा के अनुसार, श्रीराम और सीता के समय का काल त्रेतायुग था, यानी कि लगभग लाखों वर्ष पूर्व। हालांकि, पाश्चात्य और भारतीय शोधों में रामायण के रचनाकाल पर पर्याप्त विचार-विमर्श हुआ है। इसके लिए विभिन्न मत प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख मतों के अनुसार, रामायण की रचना के प्रारंभिक और अंतिम समय का अनुमान लगाया जाता है, जिससे रचनाकाल की अवधि का संकेत मिलता है।

रामायण के रचनाकाल के शोध में सामने आई प्रमुख समस्याएँ:

रामायण के रचनाकाल के शोध में सामने आई प्रमुख समस्याएँ:

  1. रामायण में रचनाकाल का स्पष्ट उल्लेख – रामायण के रचनाकाल का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं मिलता है।
  2. पाश्चात्य शास्त्रों द्वारा घटनाक्रम की ऐतिहासिकता पर संदेह – पाश्चात्य विद्वान रामायण के घटनाक्रम की ऐतिहासिकता को लेकर संदेह व्यक्त करते हैं।
  3. प्रामाणिक आंतरिक और बाह्य प्रमाणों का अभाव – रामायण के रचनाकाल के निर्धारण के लिए आंतरिक और बाह्य प्रमाणों की कमी है।
  4. वैदिक काल के बाद रामायण की रचना – क्या रामायण की रचना वास्तव में वैदिक काल के बाद हुई थी? इस पर विचार किया गया है।
  5. महाभारत पर आधारित काल्पनिक तिथि – रामायण की रचना की तिथि महाभारत से संबंधित काल्पनिक तिथियों पर आधारित हो सकती है।
  6. रामायण में बौद्ध प्रभाव का अभाव – क्या रामायण में बौद्ध धर्म का कोई प्रभाव था, इस पर भी चर्चा हुई है।
  7. भौगोलिक संदर्भ की भिन्नता – रामायण के भौगोलिक संदर्भों में स्पष्टता और भिन्नता पर विचार।
  8. यूनानी प्रभाव – क्या रामायण में यूनानी सभ्यता का कोई प्रभाव था?
  9. रामायण के मूल पात्रों की स्थिति – राम के चरित्र और उनके स्थान को लेकर विविध मतों का निरूपण।
  10. 500 ई.पू. की संस्कृत से सम्बंधित साम्य – क्या रामायण की रचना 500 ई.पू. के आसपास हुई थी, इसके बारे में अध्ययन।
  11. अपशास्त्रों और प्रयोगों की उपलब्धता – रामायण में अन्य शास्त्रों और प्रयोगों की संदर्भ सामग्री की उपलब्धता पर विचार।

कुछ भारतीयों का मानना है कि यह महाकाव्य 600 ई.पू. से पहले लिखा गया था। उनका तर्क यह है कि महाभारत, जो रामायण के बाद आया, बौद्ध धर्म का कोई उल्लेख नहीं करता, जबकि इसमें जैन, शैव, पाशुपत और अन्य धार्मिक परंपराओं का उल्लेख मिलता है। इसलिए, वे मानते हैं कि रामायण का समय गौतम बुद्ध के काल से पहले होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, भाषा-शैली भी पाणिनि के समय से पूर्व की प्रतीत होती है। कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि रामायण का पहला और अंतिम काव्यांश संभवतः बाद में जोड़ा गया था। अध्याय दो से सात तक विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया गया है कि राम भगवान विष्णु के अवतार थे। हालांकि कुछ का यह भी मत है कि इस महाकाव्य में यूनानी और अन्य सांस्कृतिक संदर्भ मिलते हैं, जो इसे दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले का नहीं मानते। फिर भी, यह धारणा विवादास्पद है। 600 ई.पू. से पूर्व का समय उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि बौद्ध जातक कथाओं में रामायण के पात्रों का उल्लेख मिलता है, जबकि रामायण में जातक कथाओं के पात्रों का कोई उल्लेख नहीं है।

हिंदू कालगणना के अनुसार रचनाकाल (Composition Period According to Hindu Chronology):

हिन्दू कालगणना के अनुसार, रामायण का रचनाकाल त्रेतायुग में माना जाता है। भारतीय कालगणना में समय को चार युगों में विभाजित किया गया है:

  • सतयुग
  • त्रेतायुग
  • द्वापर युग
  • कलियुग
  • कलियुग – 4,32,000 वर्ष
  • द्वापर युग – 8,64,000 वर्ष
  • त्रेतायुग – 12,96,000 वर्ष
  • सतयुग – 17,28,000 वर्ष

इस गणना के अनुसार, रामायण का समय न्यूनतम 8,70,000 वर्ष पूर्व हो सकता है (वर्तमान कलियुग के 5,250 वर्षों और पिछले द्वापर युग के 8,64,000 वर्षों को जोड़कर)। हालांकि, कुछ विद्वान इसे लगभग 8,000 ई.पू. के आस-पास मानते हैं, जबकि अन्य इसे इससे भी पुराना मानते हैं। इस तिथि को लेकर विभिन्न मत हैं, और इन अनुमानों की वैधता पर बहस चलती रहती है।

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