जब भक्ति में मन न लगे, फिर भी नाम जपने का फल

हमें अपने जीवन में अक्सर ऐसा अनुभव होता है कि मन भक्ति में नहीं लगता। कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि नाम जपने का मन नहीं करता, फिर भी हम मजबूरी या आदत से बैठ कर जाप करते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है, क्या इस मन से किया गया नाम जप भी कोई फल देगा?

इस सवाल का उत्तर तुलसीदास जी ने बहुत सुंदर तरीके से दिया था। एक बार एक भक्त ने उनसे यही सवाल पूछा, “कभी-कभी भक्ति करने का मन नहीं करता फिर भी हम नाम जपने के लिए बैठ जाते हैं, क्या ऐसे नाम जपने का कोई फल मिलता है?”

तुलसीदास जी मुस्करा कर उत्तर देते हैं:

“तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज।
भौम पड़ा जामे सभी, उल्टा सीधा बीज॥”

इसका अर्थ है, जैसे खेत में जब बीज बोए जाते हैं तो यह नहीं देखा जाता कि बीज उल्टे पड़े हैं या सीधे। समय के साथ, चाहे जैसा भी बीज पड़े, अंततः वह फल देने के लिए तैयार हो जाता है। इसी तरह से, चाहे हम प्रभु का नाम प्रेम से जपें या न चाहते हुए भी जपें, उस नाम का फल हमें जरूर मिलेगा।

इसलिए, हमें कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि जब मन नहीं लगता तो भक्ति या नाम जप का कोई लाभ नहीं होगा। असल में, हर प्रयास का महत्व है, और भगवान हमें हमारी निष्ठा और इरादे के हिसाब से फल जरूर देते हैं।

One thought on “जब भक्ति में मन न लगे, फिर भी नाम जपने का फल”
  1. मन के न लगने पर भी नाम जप करना एक महत्वपूर्ण प्रयास है। तुलसीदास जी का उदाहरण हमें यह समझाता है कि हर प्रयास का फल मिलता है। भक्ति में मन लगे या न लगे, निष्ठा और इरादा ही मायने रखता है। क्या हमें अपने प्रयासों पर संदेह करना चाहिए?

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